सब बदल सा गया

तीन साल और सब रेत जैसे हाथों से फिसल गया।
पुराने कपङे अब भी रखें हैं पर अलमारी की सीलन की गंध में तुम्हारे बदन की महक कुछ लापता सी हो गई है।
रिक्शा से घर लौटते हुए कुछ पैसे कम पङ गए थे, बटुआ टटोला ,पैसे तो अब भी रखें थे कुछ, पर तुम्हारा आँखों के कोनों से मुझे घूरना लापता था।
याद तो अब भी सब उतना ही करतें हैं, बस आँसू अब कुछ कम हैं। कमरे में खुद बंद कर यूँ ही तुम्हारी तस्वीरों से हाल-ए-दिल बुदबुदा लेते है। अक्स वही है तस्वीरों में पर ऐहसास तुम्हारा लापता है।

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