मेरी चौकोर बिंदी
अक्सर कुछ नया करते रहती थी
रंग रुप में कुछ यूँ फेर बदल
के एक नज़र देख, नज़र थम जाए एक और पल के लिए मेरे चहरे पे
बिंदी लगाना युँही शुरु हुआ
आँखें कुछ अलग ढंग से खेलती थी
मेरे चहरे पे लगी बिंदी के बदलते रंग के साथ
बस फिर क्या कुछ और देर उनकी नज़रें चुराने का जी चाहा
और लगाई मैंने एक चौकोर बिंदी
आँखों की उलझन के साथ
एक धीमी सी मुस्कान होंठों से यूँ कतराती हुई गुजरे
उससे पहले ही बारिश की एक तीखी बौछार ने
माथे से कुछ यूँ साफ किया उस बिंदी को के मुझे कानो-कान खबर ना पहुँची
बारिश की उस बौछार के साथ
एहसास और अरमान के साथ बहगई
मेरी चौकोर बिंदी
बिन्दी का रूपक लेकर अपनी स्वछंद उम्मीदों को इतनी बेहतरीन पंक्तियों में पिरोया हैं तुमने जो की सिर्फ एक लड़की ही कर सकती है । बिन्दी के इस रूपक पर कभी गहन चर्चा करेंगे । उम्दा। लिखती रहो ताकि हम जैसे पाठक विचारों की कौंध तक पहुँच सके ।
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