बेचारी घड़ी

तुम क्यों खफ़ा हो इस घड़ी से?
हमारे रिश्ते में इंतजार तो मेरे हिस्से आया है।

हमारे रिश्ते में,
दर्द मिला तुम्हें,
पर शिक़वा तो मेरे हिस्से आया है।

तुम जो थे नाराज़,
तो तुम्हारा गुस्सा मेरे हिस्से आया है।

ना जाने कहां गई
हमारे रिश्ते की वह हंसी बहार,
बस अब के पतझड़ मेरे हिस्से आया है।

तुम्हें जरूर मिले सब आंसू,
पर हमारे रिश्ते का सूखा मेरे हिस्से आया है।

वो रात रानी का गजरा याद है तुम्हें?
मेरे बालों में जो उलझा था?
उसकी खुशबू तो तुम साथ ले गए,
वो किताब में दबा गजरा मेरे हिस्से आया है।

तुम रुसवा हुए,
कि तुमसे मैंने झूठ बोला।
तुम्हें मिले मेरे सच्चे झूठ,
मेरे हिस्से हमारे रिश्ते का कड़वा सच आया है।

क्यों नाराज होते हो बेचारी घड़ी से?
हमारे रिश्ते का इंतजार तो मेरे हिस्से आया है।
वो बेजार दिन,
वह स्याह रातें,
और ठहरे हुए से साल,
वो लंबा इंतजार,
सब मेरे ही हिस्से आया है।

उन सालों के कई महीने तुम्हें मिले,
पर एक आधा महीना मेरे हिस्से आया है।

तुम्हें मिली जनवरी की सुनहली धूप,
दिसंबर का सर्द मौसम मेरे हिस्से आया है।

तुम्हें मिला फरवरी का बसंत,
और मार्च का  पतझड़ मेरे हिस्से आया है।

मई की छुट्टी तुम्हारी थी,
जुलाई का भागना दौड़ना मेरे हिस्से आया है।

सितंबर का सावन तुम्हें मिला,
अगस्त का हुम मेरे हिस्से आया है।

नवंबर की दिवाली तुम्हें मिली,
जून का सन्नाटा मेरे हिस्से आया है।

माफ कर दो उस बेचारी घड़ी को,
हमारे रिश्ते का सब इंतजार
तो मेरे हिस्से आया है।

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