उफ़ ये इंसान

जो चाह हो मन में तुझे उससे बात करने की
दिन भर की भागा दौङी में भी ख्याल उसका साथ न छोङे
तो बहाने से उँगलियाँ उसका नंबर मिला ही देती है
कभी क्लास के नोट्स के बहाने बना
तो कभी यूँ ही क्रिसमस विश करने के लिए
पर मन अपनी मन-मानी करा ही लेता है

पर ये ही मन जब उनसे उचाट हो जाता है
रूठ कर कोने में दुबक जाता है
तो येही मन तुम्हें उनसे नज़रें चुराना सिखा देता
जिस चहरे की मुस्कान तुम्हारी नज़रें बाँध देती थी
उस चहरे को नज़र भर नहीं देखते तुम

उफ़ रे इंसान
तू और तेरा मन
अजीब खेल खेलता है
कभी तेरे साथ कभी उसके साथ

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