लङकी है अच्छी पर देखना तुम डिस्ट्रैक्ट मत होना ज़्यादा

ये आजकल सुने जाने वाला मुफ़्त का वो ज्ञान है जो रिलेशनशिप में आये नये कपल्स को न चाहते हुए भी सुनना पढ़ता हैं। बोलने की आज़ादी का संपूर्ण रूप से प्रयोग करना और अंत तक करते रहने का ऐसा बोलने वाले लोग जीता जागता उदाहरण हैं। ये सुनने के बाद मन को एक दफा अच्छा लगता है, ये सोच कर के  अरे भई वाह आजकल के स्वार्थी समय में भी सामने वाला इंसान मेरी कितनी परवाह करता है पर मन में कई सवाल भी आते हैं; 
1 लड़कियाँ ऐसा क्या करती है के लड़के डिस्ट्रैक्ट होते हैं?
2 डिस्ट्रैक्शन हमेशा लड़को को क्यों होती हैं ? ऐसी सलाह, ऐसा मशवरा सिर्फ लड़को के लिए ही क्यों?
3 क्या लड़कियाँ डिस्ट्रैक्ट नहीं होती?
इन सवालों पर गहरा सोचने के बाद कुछ कारण, कुछ औचित्य सामने आये।
एक एक कर के इन सब सवालों के कुछ ये सब जवाब खोज पाई हु मैं,

21स्वी सदी आ खड़ी हैं सामने फिर भी "मेन आर फ्रॉम मार्स एण्ड वीमेन आर फ्रॉम वीनस" जैसे मिथ ही प्रचलित है समाज में, एक अलग ग्रेह से आई औरतें मर्दों को कुछ यूँ अपने जाल में फांस देती है के वो अपने जीवन के उस परम लक्ष्य से भटक जाते, मर्द कर भी क्या सकते हैं एक औरत की गहरी काली आँखों में कुछ यूँ डूब जाते हैं के दुनिया की खैर खबर फिर कहाँ रहती हैं। इन्हीं आँखों से बचने की ही तो सलाह दुनिया उस हर मर्द को देती है जिसे किसी लड़की से बाते करते वो पाते हैं।

लड़कियाँ लड़कों को डिस्ट्रैक्ट करती है ऐसा सोचना क्या इन लोगों की अपनी सोच हैं या ये इनकी ऐतिहासिकता की देन हैं? हमारे पुराण, हमारी धार्मिक कथायें सब यही नहीं सिखाती के विश्वामित्र को मेनका ने 'डिस्ट्रैक्ट ' किया और दुर्योधन का अंत द्रौपदी की हंसी के कारण हुआ, रावण जैसे बुद्धिजीवी को भी सीता मैय्यां ले डूबी। इसलिए  किसी भी आदमी के जीवन में नयी औरत का आना उसका उसके अंत की तरफ बढ़ना भी हो सकता हैं। इस हिसाब से उन सब का लड़को को ज्ञान देना के डिस्ट्रैक्ट मत होना कही न कही जायज़ हैं, आखिरकार पतन से डर सबको लगता हैं ।

और आखरी सवाल लडकियां कभी डिस्ट्रैक्ट क्यों नहीं होती? अरे भाईसाहब डिस्ट्रैक्ट तो जी वो होते हैं जिनके जीवन का एक परम लक्ष्य होता हैं, खूब पढ़ लिख कर बड़ा बाबू या अफ़सर तो माँ का राजा बेट ही बनेगा , बिटिया रानी ने तो ऐसे ही किसी अफसर की रसोई में राजमा चावल बनाने हैं , और फिर राजमा चावल बनाने में काहे  का डिस्ट्रैक्शन? नमक चुटकी भर कम ज़्यादा भी हुआ तो राजा बीटा की चार बातें सुन बिटिया रानी उन्हें तुरंत ठीक कर ही देंगी। 
इस सवाल का एक जवाब और मेरे मन में आया के शायद लड़कियाँ इतनी काबिल और इतनी फोकस्ड होती हैं के लडकें कहाँ उन्हें डिस्ट्रैक्ट कर पायें।
पर मैं-मैं-मैं की रट लगाये रखने वाले पितृसत्तात्मक सोच में जकड़े हुए मर्द ऐसा सोच पाते होंगे, ऐसा सोच कर ही एक रूखी सी हंसी आजाती हैं होंठों पर।

खैर इनमें से सही कारण जो भी रहा हो अगली दफ़ा ऐसा ज्ञान देने वाले समझदार लोगों से मैं ज़रूर पूछना चाहूँगी के ये सब उनका मुफ़्त का ज्ञान है या इसके लिए कुछ पैसे लेते है क्यूंकि मैं ऐसा  ज्ञान नेगी जी के यहां की मुफ़्त कॉफ़ी के बदलें भी नहीं इंटरटेन करुँगी। 

Comments

  1. बहुत दिनों बाद तुम्हारी तरफ से कुछ पढ़ने को मिला। ये समाज उन लड़कों को भी बुन रहा है जिन्हें लड़कियों को बुना।कमाल ये है की साथ रहकर भी वो जवाब नहीं ढूंढ पाए की धूरी इतनी क्यूँ है। लेकिन समानता हर हालात में होनी चाहिए। लेकिन समाज टूटने से बचना चाहता है।तोडना ही होगा उन पोंगापंथी मूल्यों को पढ़िए गीता बनिए सीता। अभी यही अटके है

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