मेरी बेबाकियत को अंग्रेसफुल्ल कहा तो, इस बात पे हैरानी हुई
बचपन से ही फ्रॉक, सूट-सलवारआदि पहनने का शौक कभी रहा नहीं। बिंदी, लिपस्टिक माँ को लगाए देखा अक्सर था पर पिताजी के साथ बॉय कट बालों पर निक्कर- टीशर्ट पहनने वाली लड़की को बिंदी लिपस्टिक कभी खासा भाई नहीं, बचपन में तो नहीं । पर उम्र की सीढ़ी पर आगे बढ़ते बढ़ते लड़की हूँ न केवल इसका एहसास हुआ और कराया गया पर लडकिपन का रंग भी खासा पक्का चढ़ा और फिर क्या था बिंदी, लिपस्टिक, चूरी , चमचम सब अच्छा लगने लगा और इन सब के साथ अच्छी लगने लगी साड़ी।
जी हाँ कॉलेज के पहले दुसरे वर्ष तक आते आते साड़ी मेरी अलमारी में रखे दुसरे कपड़ों के साथ एक नई फैमिली मेंबर बन गयी । बाकि सब की तरह मैंने भी साड़ी को एक औरत के लिए सबसे ग्रेसफुल वस्त्र हैं ऐसा न सिर्फ़ सुना था पर मान भी लिया था और जो की मैं आम लड़कियों से थोड़ा लम्बी हूँ तो समाज के मापदण्डों के हिसाब से साड़ी मुझपे कुछ ज़्यादा फबेगी ये मैं साड़ी को पहन ने से पहले न केवल जानती थी पर मान भी चुकी थी।और फिर क्या था इसी के बाद से हर नये रिश्तेदार की शादी पे मैंने माँ की हर वो साड़ी पहनी जो मैं बचपन स उन्हें पहनते देख खुश हो उठती थी। हज़ारों सुन्दर सेल्फ़ीज़, इंस्टाग्राम पे अनेकों लाइक्स, दोस्तों की तारीफ और माँ द्वारा की गयी मेरी तारीफ़ के बाद मेरा साड़ी पहनने का अनुभव काफी अच्छा रहा, लेकिन सिर्फ तब तक जब तक इस सो कॉल्ड ग्रेसफुल ड्रेस में किसी में मुझे अंग्रेसफुल्ल नहीं कहा था। और इसी के साथ मुझे ये सोचने पर मजबूर किया के इतनी ग्रेस वाली इस साड़ी में मैं अंग्रेसफुल्ल कैसे लगी और क्यों?
कुछ साल पहले जिस पारुल में तारीफें बटोरी थी और अब जिसे अंग्रेसफुल्ल कहा गया, उन दोनों में शारीरिक, मानसिक और व्यवहारिक स्तर पे कई अंतर आ चुके थे और इन बदलावों ने साड़ी जैसे ग्रेसफुल अटायर को भी अंग्रेसफुल्ल करार करवा दिया था।
कॉलेज में 50 किलो वज़न वाले शरीर पे पहली दूसरी दफा साड़ी पहनने में कोई ख़ास हिचकिचाहट तो नहीं हुई थी पर साड़ी जैसे उलझे हुए पोशाक को बिना गिरे पड़े पूरा दिन कैर्री करना मेरे लिए कोई आसान काम नहीं था। इसलिए हर समय काफ़ी सचेत और सावधान नज़र आती थी। और मेरी इसी सावधानी को लोग मेरी शर्म, लिहाज़ और लज्जा समझने की गलती कर बैठे। कैसे उम्र भर एक टॉमबॉय की तरह रहने वाली लड़की भारतीय संस्कृति द्वारा औरतों के लिए तैय किये गए मापदण्डो पर खरी उतरी वो भी सिर्फ एक साड़ी पहनने से, ये बदलाव देख कर सब खासा खुश और हैरान थे। पर 2016, कॉलेज में पहली दफा साड़ी पहन ने के पांच साल बाद 65 किलो के शरीर पे जब साड़ी बाँधी तो वो सावधानी कही कॉलेज में ही छूट गयी थी। अब पूरे आत्मविश्वास और बेबाकियत के साथ साड़ी पहन सकती थी जिस तरह घर पे पायजामा पहना करती थी। इस आत्मविश्वास के और जो नया था वो था 15 किलो बढ़ा हुआ वज़न, जिसका का कुछ हिस्सा मेरी तोंद पे भी जमा हुआ। और इसी वज़न ने मेरी बेल जैसी कमर को अब बेल न रहने दिया था । पर मैं इन सब बदलावों से खासा खुश थी। लेकिन सिर्फ़ तब जब तक मैंने ये एहसास न किया था के मेरा ये बढ़ा वज़न जब मेरे साड़ी के पल्लू से झाँकता है तो मेरी साड़ी और उसे पहने हुए मैं लोगों को अंग्रेसफुल्ल लगती हूँ। जिस ऊँचे कद के चलते साड़ी और अन्य पोशाकें मुझपे फब्ती थी आज उसी कद ने एक आम साड़ी को मेरे लिए छोटा बना दिया है और मुझे मेरी तोंद छुपाने नहीं देती। और इसी के चलते भैया की शादी पे मुझे यह सुन ने मिला के कल पहने सूट में खूब जच्च रहीं थी साड़ी में ख़ास मज़ा नहीं आ रहा। कारण सिर्फ ये था के मैंने ना ही अपनी तोंद को छुपाने की कोई भी कोशिश की थी ना ही साड़ी पहने हुए नाचते गाते, उठते - बैठते बार बार कई बार अपने पल्लू को ठीक करने की कोई कोशिश। काफी तस्सल्ली से बाँधी गयी साड़ी, उसपे लगी पिंज और साड़ी बाँधने में अपनी निपुणता पे पूरा विश्वास रखते हुए मैंने उस साड़ी में शादी का उतना ही मज़ा उठाया जितना शायद मेरे भाई ने अपनी पेंट शर्ट में उठाया होगा।
गल्ती उन लोगों से हुई जिन्होंने पहले मेरी सावधानी को मेरी शर्म समझा और फिर मेरे बेबाकपन को मेरी अंग्रेसफुलनेस्स । पल्लू के पीछे से झाँकती मेरी तोंद मुझे बेशर्म नहीं बनाती इसलिए मुझे उसे बदलने की कोई ज़रूरत महसूस नहीं होती । उसे देख कर बॉडी शेमिंग करने वाले लोगों की सोच है जिसे उन्हें बदलना चाहिए। साड़ी से बेल जैसी कमर झाँके या तोंद इस्पे जजमेंटल हुए लोगों को रुक कर दो मिनट सोचने की ज़रूरत है के न ही मेरी साड़ी न वॉली बॉल कोर्ट में पहना हुआ मेरा ट्रैक सूट मुझे ग्रेसफुल बनाता है , जो बनता है वो है मेरी सोच जो इन सब लोगों की बॉडी शेमिंग से नहीं बदलेगी। और रही बात शादी के कपड़ों की तो अब तो मैं अपनी शादी में भी ट्रैक सूट पहन कर जाऊँगी, आखिर कम्फर्ट नाम कोई चीज़ होती हैं के नहीं।
जी हाँ कॉलेज के पहले दुसरे वर्ष तक आते आते साड़ी मेरी अलमारी में रखे दुसरे कपड़ों के साथ एक नई फैमिली मेंबर बन गयी । बाकि सब की तरह मैंने भी साड़ी को एक औरत के लिए सबसे ग्रेसफुल वस्त्र हैं ऐसा न सिर्फ़ सुना था पर मान भी लिया था और जो की मैं आम लड़कियों से थोड़ा लम्बी हूँ तो समाज के मापदण्डों के हिसाब से साड़ी मुझपे कुछ ज़्यादा फबेगी ये मैं साड़ी को पहन ने से पहले न केवल जानती थी पर मान भी चुकी थी।और फिर क्या था इसी के बाद से हर नये रिश्तेदार की शादी पे मैंने माँ की हर वो साड़ी पहनी जो मैं बचपन स उन्हें पहनते देख खुश हो उठती थी। हज़ारों सुन्दर सेल्फ़ीज़, इंस्टाग्राम पे अनेकों लाइक्स, दोस्तों की तारीफ और माँ द्वारा की गयी मेरी तारीफ़ के बाद मेरा साड़ी पहनने का अनुभव काफी अच्छा रहा, लेकिन सिर्फ तब तक जब तक इस सो कॉल्ड ग्रेसफुल ड्रेस में किसी में मुझे अंग्रेसफुल्ल नहीं कहा था। और इसी के साथ मुझे ये सोचने पर मजबूर किया के इतनी ग्रेस वाली इस साड़ी में मैं अंग्रेसफुल्ल कैसे लगी और क्यों?
कुछ साल पहले जिस पारुल में तारीफें बटोरी थी और अब जिसे अंग्रेसफुल्ल कहा गया, उन दोनों में शारीरिक, मानसिक और व्यवहारिक स्तर पे कई अंतर आ चुके थे और इन बदलावों ने साड़ी जैसे ग्रेसफुल अटायर को भी अंग्रेसफुल्ल करार करवा दिया था।
कॉलेज में 50 किलो वज़न वाले शरीर पे पहली दूसरी दफा साड़ी पहनने में कोई ख़ास हिचकिचाहट तो नहीं हुई थी पर साड़ी जैसे उलझे हुए पोशाक को बिना गिरे पड़े पूरा दिन कैर्री करना मेरे लिए कोई आसान काम नहीं था। इसलिए हर समय काफ़ी सचेत और सावधान नज़र आती थी। और मेरी इसी सावधानी को लोग मेरी शर्म, लिहाज़ और लज्जा समझने की गलती कर बैठे। कैसे उम्र भर एक टॉमबॉय की तरह रहने वाली लड़की भारतीय संस्कृति द्वारा औरतों के लिए तैय किये गए मापदण्डो पर खरी उतरी वो भी सिर्फ एक साड़ी पहनने से, ये बदलाव देख कर सब खासा खुश और हैरान थे। पर 2016, कॉलेज में पहली दफा साड़ी पहन ने के पांच साल बाद 65 किलो के शरीर पे जब साड़ी बाँधी तो वो सावधानी कही कॉलेज में ही छूट गयी थी। अब पूरे आत्मविश्वास और बेबाकियत के साथ साड़ी पहन सकती थी जिस तरह घर पे पायजामा पहना करती थी। इस आत्मविश्वास के और जो नया था वो था 15 किलो बढ़ा हुआ वज़न, जिसका का कुछ हिस्सा मेरी तोंद पे भी जमा हुआ। और इसी वज़न ने मेरी बेल जैसी कमर को अब बेल न रहने दिया था । पर मैं इन सब बदलावों से खासा खुश थी। लेकिन सिर्फ़ तब जब तक मैंने ये एहसास न किया था के मेरा ये बढ़ा वज़न जब मेरे साड़ी के पल्लू से झाँकता है तो मेरी साड़ी और उसे पहने हुए मैं लोगों को अंग्रेसफुल्ल लगती हूँ। जिस ऊँचे कद के चलते साड़ी और अन्य पोशाकें मुझपे फब्ती थी आज उसी कद ने एक आम साड़ी को मेरे लिए छोटा बना दिया है और मुझे मेरी तोंद छुपाने नहीं देती। और इसी के चलते भैया की शादी पे मुझे यह सुन ने मिला के कल पहने सूट में खूब जच्च रहीं थी साड़ी में ख़ास मज़ा नहीं आ रहा। कारण सिर्फ ये था के मैंने ना ही अपनी तोंद को छुपाने की कोई भी कोशिश की थी ना ही साड़ी पहने हुए नाचते गाते, उठते - बैठते बार बार कई बार अपने पल्लू को ठीक करने की कोई कोशिश। काफी तस्सल्ली से बाँधी गयी साड़ी, उसपे लगी पिंज और साड़ी बाँधने में अपनी निपुणता पे पूरा विश्वास रखते हुए मैंने उस साड़ी में शादी का उतना ही मज़ा उठाया जितना शायद मेरे भाई ने अपनी पेंट शर्ट में उठाया होगा।
गल्ती उन लोगों से हुई जिन्होंने पहले मेरी सावधानी को मेरी शर्म समझा और फिर मेरे बेबाकपन को मेरी अंग्रेसफुलनेस्स । पल्लू के पीछे से झाँकती मेरी तोंद मुझे बेशर्म नहीं बनाती इसलिए मुझे उसे बदलने की कोई ज़रूरत महसूस नहीं होती । उसे देख कर बॉडी शेमिंग करने वाले लोगों की सोच है जिसे उन्हें बदलना चाहिए। साड़ी से बेल जैसी कमर झाँके या तोंद इस्पे जजमेंटल हुए लोगों को रुक कर दो मिनट सोचने की ज़रूरत है के न ही मेरी साड़ी न वॉली बॉल कोर्ट में पहना हुआ मेरा ट्रैक सूट मुझे ग्रेसफुल बनाता है , जो बनता है वो है मेरी सोच जो इन सब लोगों की बॉडी शेमिंग से नहीं बदलेगी। और रही बात शादी के कपड़ों की तो अब तो मैं अपनी शादी में भी ट्रैक सूट पहन कर जाऊँगी, आखिर कम्फर्ट नाम कोई चीज़ होती हैं के नहीं।
इस पोस्ट ने तो हिला दिया। सच लिखने के माद्दा बहुत कम लोग करते है।
ReplyDeleteबेहतरीन
शेयर करने की इजाजत दे। .....
ha zaroor
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