चाँदनी
वो चाँदनी ही थी,
जो उन
रातों को हम दोनों के बीच
खेलती थी।
जब तुम्हारा हाथ मेरी
क़मर पे सरकता था,
वो
चाँदनी ही थी जिसका निशान
पीछे रह जाता था।
तुम्हारी गहरी आँखें,
जब
मेरी खिलखिलाती आँखों में
झाँकती थी।
तो वो चाँदनी ही थी,
जो
दोनों की आँखों में
जगमगाती थी।
जब तुम्हारे सुर्ख़ होंठ,
मेरे दाँतों में दबे
होंठ आहिस्ता से चूमते
थे,
तो वो चाँदनी ही थी जो उन
दोनों के बीच पिघल बह जाती थी।
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