वो कहते हैं चाँद पागल है

वो कहते हैं चाँद पागल है
अंधेरे में निकल पड़ता है
इस से याद आया तुम्हारा पागलपन
तुम भी कम पागल थोड़े ही थे
जो भीड़ में यूँ पीछे आ जाते थे
तुम, तुम्हारा ख़याल
तुम्हारी आवाज़, तुम्हारी यादें
कमरे से बाहर से घूरती
तुम्हारी आँखें
मेरी नाराज़गी में तुम्हारा
वो काला कुर्ता पहनना
और तब तक मेरी आँखों में
झाँकना जब तक होंठों के
कोनों से वो हँसी ना आ जाए

उसे पागलपन कहूँ या कुछ और
बग़ल से गुज़रते हुए वो
गुनगुनाना
ऐसी धुन जो सिर्फ़ तुम और
मैं समझ सके
किताबों के बीच वो ख़त छोड़ जाना
जिसमें तुम्हारे बदन की महक थी

वो कहते हैं चाँद पागल है
तुम भी कम पागल थोड़े ही थे

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