उस दिन का वो गजरा

बस यूँ ही उस दिन बालों में गजरा डाल
लिया था
वो बिंदी
वो साड़ी
आँखों की चमक
होंठों पे मुस्कान
बस यूँ ही
शायद कैम्पस में बीतने वाले आख़िरी
दिनों में
एक बार फिर एक दूजे को मुड़कर देख लें

उस दिन का वो गजरा कई दिन मेरे बालों
में महक रहा था
यही सोचकर
कि शायद किसी दिन उसकी महक तुम्हें
वापस ले आए

उस दिन का वो गजरा
आज भी किताब के उस पन्ने के बीच दबा
है
जहाँ वो शब्द मेरा हाल-ए-दिल बयान
कर गए थे

उस दिन का वो गजरा
जब पहली दफ़ा बालों से उसे गुँदा
था
आज भी कमरे के उस कोने को महका रहा
है
जहाँ उस किताब में वो बंद है

उस दिन का वो गजरा
अकेला ना था
माथे पे बिंदिया भी थी
आँखें भी कज़रारी सी
बस वो चूड़ियाँ न थीं जो तुमने लाने
का वादा किया था
उस दिन की वो कलाई आज भी इंतज़ार में
है

उस दिन का वो गजरा
आज जब किताब में देखा
तो थोड़ा मुरझाया सा था

दिन भी तो कितने हुए
पर महक आज भी है
हल्की ही सही पर उतनी ही ख़ूबसूरत

जैसे उस लड़की का मुरझाया चेहरा
जिसके मन में उम्मीद आज तक है
हल्की ही सही पर उतनी ही ख़ूबसूरत

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