कोहरा

अब के आना तो ये बादल कुछ साथ ले आना
दिल्ली की गर्मी में आफ़त आई है

कल ही जाना और बाँध कर रख लेना कुछ बादल मेरे नाम के
साथ में बाँधना इनकी सियाह भी
सुरमा बना जिन्हें आँखों में भर लूँ
जो ना बरसी हों वो बूँदे
आँसू बन आँखों से बहेगी
अबके फिर जो तुम जाओगे

अब के आना तो वो कोहरा पीछे ही छोड़ आना
तुम्हारा चेहरा देखने में आफ़त आई है

कल ही उठना और सूटकेस से निकाल उसे बाहर करना
बाहर करना उसके साथ कोहरा जो हमारे दरमियान है
चेहरे के साथ तुम्हारे मन से भी मिलना है
जाननी हैं वो सब बातें
जो इस कोहरे के पीछे छुपी है
छूने हैं वो सब जज़्बात
जो कोहरे की चादर में मुँह दुबकाए  बैठें हैं

अब के आना तो अपने साथ मुझे भी लेते आना
बहुत अरसा हुआ अपने आप से फिर उस तरह मिले

कल ही उठना और सुबह की पहली करवट के साथ खोज लेना मुझे
तकिए के नीचे
या चादर की सिलवट में कहीं
या बालों में उलझी उँगलियों के साथ
उलझा होगा मेरा वो अहसास
जो मुझे 'मैं' बनाता है
उसे ज़रा लेते आना

अबके आना तो ये सब लेते आना
साथ इसके लाना दिल्ली की वो बारिश
जो पिछली दफ़ा रूठ कर यूँही
जाती हुई तुम्हारी ट्रेन के आख़िरी डिब्बे में चढ़ गई थी
साथ उसके मेरी वो हँसी
जो उन भीगती बूँदों के साथ लिपटी हुई चली गई थी

अब के आना तो ये सब लेते आना
और जो सामान ज़्यादा लगे तो
सोचना मत,
सब स्टेशन पर छोड़ तुम आ जाना बस
अब के बस तुम आ जाना
दिल्ली आती हुई उस गाड़ी में
जो १६०० किलोमीटर दूर आती तो है
पर तुम्हें वहीं भूल आती है।

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